क्रिया काल एवं वाच्य SSC GD Hindi Grammar
क्रिया
जिस शब्द से किसी कार्य के होने, करने का बोध हो उसे ‘क्रिया’ कहते हैं। ‘क्रिया’ का अर्थ है, कार्य का होना या करना। प्रत्येक वाक्य को पूरा करने में क्रियाका होना बहुत ही जरूरी होता है।
क्रिया के भी कई रूप होते हैं, जो प्रत्यय और सहायक क्रियाओं द्वारा बदले जाते हैं। क्रिया किसी कार्य के करने या उसके होने के बारे में दर्शाती है। क्रिया को करने वाला ‘कर्ता’ कहलाता है। क्रिया एक विकारी शब्द है, जिसके रूप वचन, लिंग एवं पुरुष के अनुसार बदलते रहते हैं। क्रिया की यह अपनी विशेषता है।
जैसे:- खाना, पीना, जाना, पढ़ना, खेलना, आदि…।
उदाहरण:-
- आशुवेन्द्र को भोपाल जाना है।
- आकांशा ने आज सही काम किया।
- मोहन गाना गा रहा है।
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रचना की दृष्टि से क्रिया के भेद:-
रचना की दृष्टि से क्रिया के सामान्यतः दो भेद हैं
अ) सकर्मक क्रिया
ब) अकर्मक क्रिया
अ) सकर्मक क्रिया
जिन क्रियाओं का असर कर्ता पर नहीं कर्म पर पड़ता है, वह सकर्मक क्रिया कहलाती हैं। इन क्रियाओं में कर्म का होना आवश्यक होता हैं| यहाँ क्रिया के व्यापार का संचालन तो होता है, लेकिन इसका फल या प्रभाव किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु पर, अर्थात् कर्म पर पड़ता है।
जैसे:- दीपा खाना खाती है।
इस वाक्य में ‘दीपा’ कर्ता है, ‘खाने’ के साथ उसका कृर्तरूप से संबंध है, अतः यहाँ, ‘खाना’ क्रिया सकर्मक है।
ब) अकर्मक क्रिया
जिन क्रियाओं का असर कर्ता पर ही पड़ता है वे अकर्मक क्रिया कहलाती हैं। ऐसी अकर्मक क्रियाओं को कर्म की आवश्यकता नहीं होती। क्युकि अकर्मक क्रियाओं में फल नहीं होता, तो क्रिया का व्यापार और फल कर्ता पर पड़ता है।
उदाहरण:- रुक्मिणी सोती है।
इस वाक्य में ‘रुक्मिणी’ क्रिया अकर्मक है और ‘रुक्मिणी’ कर्त्ता है, ‘रुक्मिणी’ की क्रिया ‘रुक्मिणी’ द्वारा पूर्ण होती है। अतः सोने का फल भी कर्त्ता पर ही पड़ता है। इसलिए सोना’ अकर्मक क्रिया है।
प्रयोग के आधार पर क्रिया के भेद:-
i) प्रेरणार्थक क्रिया (धातु):-
जिस क्रिया शब्द से इस बात का बोध हो कि कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी दूसरे को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, वह ‘प्रेरणार्थक क्रिया (धातु)’ कहलाती है।
जैसे- काटना से कटवाना, करना से कराना या करवाना आदि…।
उदाहरण:-
1. राहुल मुझसे किताब लिखवाता है।
- यहाँ राहुल (कर्ता) स्वयं किताब न लिखकर ‘मुझसे’ दूसरे व्यक्ति को लिखने के लिए प्रेरित करता है।
2. पिता जी ने बेटे से अख़बार मँगवाया। मालकिन नौकरानी से सज़ाई करवाती है।
- इस वाक्य में पिता जी स्वयं अखबार न लाकर बेटे से मँगवा रहे है।
ii) नामधातु क्रिया:-
क्रिया का वह रूप, जिसमें क्रिया का निर्माण संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण में प्रत्यय जोड़ने से होता है, उसे नामधातु क्रिया कहते है।
जैसे:- बात से बतियाना, चिकना से चिकनाना, हाथ से हथियाना, लात से लतियाना, बिलग से बिलगाना आदि…|
iii) पूर्वकालिक क्रिया:-
जब कर्ता एक कार्य को समाप्त करके तुरंत दूसरे काम में लग जाता है तब जो क्रिया पहले ही समाप्त हो जाती है, उसे पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं।
जैसे:-
1. चोर अंगुठी चुराकर भाग गया।
2. वे सुनकर चले गये।
iv) यौगिक क्रिया:-
जिस क्रिया की रचना एक से अधिक तत्वों से होती है, उसे यौगिक क्रिया कहते हैं।
जैसे:- रोना-धोना, हँसना-हँसाना, आते जाते रहना, पढ़वाना, बताना, बड़बड़ाना आदि…।
v) सामान्य क्रिया:-
जिस वाक्य में एक क्रिया होती है उसे सामान्य क्रिया कहते हैं।
जैसे:-
1. मैंने नाटक लिखा।
2. राम गया।
काल
क्रिया का यह रूपांतर, जिससे उसके कार्य व्यापार का समय तथा उसकी पूर्ण या अपूर्ण अवस्था का बोध हो, काल कहलाता है।
जैसे–
1. मैं खाना बनाता हूँ।
2. राजन जा चुका होगा।
काल के भेद ।
काल के तीन भेद हैं–
(1) वर्तमान काल
(2) भूतकाल
(3) भविष्य काल
1. वर्तमान काल
क्रियाओं के व्यापार की निरंतरता को ‘वर्तमान-काल’ कहते हैं। इसमें क्रिया का आरंभ हो चुका होता है समाप्त नहीं होता है।
जैसे:-
1. वह अभी गया है।
2. आकांक्षा पढ़ती है।
3. पक्षी आकाश में उङते है।
4. अन्नू खेल रही है।
वर्तमान काल के भेद वर्तमान काल के भेद हैं-
(i) सामान्य वर्तमान
(ii) तात्कालिक वर्तमान
(iii) पूर्ण वर्तमान
(iv) संदिग्ध वर्तमान
(v) संभाव्य वर्तमान
(i) सामान्य वर्तमान
क्रिया का वह रूप जिससे क्रिया का वर्तमान काल में होना पाया जाए, ‘सामान्य वर्तमान’ कहलाता है।
जैसे:-
1. वह जाता है।
2. पक्षी आकाश में उङते है।
(ii) तात्कालिक वर्तमान
इससे यह पता चलता है कि क्रिया वर्तमानकाल में हो रही है।
जैसे:-
1. हम घूमने जा रहे हैं।
2. अक्षिता खेल रही है।
(iii) पूर्ण वर्तमान:-
इससे वर्तमानकाल में कार्य की पूर्ण सिद्धि का बोध होता है।
जैसे:-
1. उसने भोजन कर लिया है।
2. वैष्णव ने पुस्तक पढ़ी है।
(iv) संदिग्ध वर्तमान:-
क्रिया का वह रूप जिससे क्रिया के होने में संदेह प्रकट हो, पर उसकी वर्तमानता में सन्देह न हो।
जैसे:-
1. छात्र कहानियाँ सुन रहे होंगे।
2. मानस खेलता होगा।
(v) संभाव्य वर्तमान:-
इससे वर्तमान काल में काम के पूरा होने की संभावना रहती है।
जैसे:-
1. वह स्वस्थ होता लगता है।
2. वह लौटा हो।
2. भूतकाल
जो समय बीत चुका है, उसे भूतकाल कहते हैं। अर्थात जिस क्रिया से कार्य की समाप्ति का बोध हो, उसे ‘भूतकाल’ कहते है।
जैसे:-
1. भोलू आया था।
2. वह पढने जाता|
भूतकाल के भेद
भूतकाल के छः भेद हैं।
(i) सामान्य भूत
(ii) आसन्न भूत
(iii) पूर्ण भूत
(iv) अपूर्ण भूत
(v) संदिग्ध भूत
(vi) हेतुहेतुमद्भूत
(i) सामान्य भूत
जिससे भूतकाल की क्रिया के विशेष समय का ज्ञान न हो।
भूतकाल क्रिया का वह रूप, जिससे कार्य के बीते हुए समय में होने का बोध होता है, लेकिन कार्य के पूर्ण होने का निश्चित समय का पता नहीं चलता है, तो उसे ‘सामान्य भूतकाल’ कहते है।
जैसे:-
1. श्रेया आयी।
2. दुकान का उद्घाटन हूआ|
(ii) आसन्न भूत:-
इससे क्रिया की समाप्ति निकट भूत में या तत्काल ही सूचित होती है। अथार्त क्रिया के जिस रूप से हमें यह पता चले की क्रिया अभी कुछ समय पहले ही पूर्ण हुई है उसे आसन्न भूतकाल कहते हैं।
जैसे:-
- मैंने खाना खाया है।
- मैं अभी सोकर उठी हूँ।
(iii) पूर्ण भूत
क्रिया के उस रूप को पूर्ण भूत कहते हैं, जिसमें क्रिया की समाप्ति के समय का स्पष्ट बोध होता है कि क्रिया को समाप्त हुए काफी समय बीता है।
जैसे:-
1. सीता ने खाना बनाया था।
2. हम घूमने गए थे।
(iv) अपूर्ण भूत:-
क्रिया के जिस रूप से कार्य के भूतकाल में शुरू होने का पता चले लेकिन खत्म होने का पता न चले, उसे अपूर्ण भूतकाल कहते हैं।
जैसे:-
- ममता गीत गा रही थी।
- श्याम जा रहा था|
(v) संदिग्ध भूत:-
इससे भूतकाल में काम के पूरा होने में संदेह होने का बोध होता है। इसमें यह संदेह बना रहता है कि भूतकाल में कार्य पूरा हुआ या नही। क्रिया के जिस रूप से अतीत में हुए कार्य पर संदेह प्रकट किया जाये, उसे संदिग्ध भूतकाल कहते हैं।
जैसे:-
1. संध्या ने खाना खाया होगा।
2. विवेक लखनऊ पहुँच गया होगा।
(vi) हेतुहेतुमद् भूत:-
इससे यह पता चलता है कि क्रिया भूतकाल में होने वाली थी, पर किसी वजह से न हो सकी। या के जिस रूप से यह पता चले कि कार्य हो सकता था लेकिन दूसरे कार्य की वजह से हुआ नहीं, उसे हेतुहेतुमद् भूतकाल कहते हैं।
जैसे:-
1. यदि वर्षा होती तो फसल अच्छी होती
3. यदि शिक्षक बाजार जाता, तो बच्चे शोर मचाते।
4. बाढ़ आ गई होती, तो सारा गाँव डूब जाता
3. भविष्य काल
भविष्य में होने वाली क्रिया को ‘भविष्य काल’ कहते हैं। काल के जिस रूप से ज्ञात हो कि कार्य होने वाला है उसे भविष्य काल कहते हैं। भविष्य काल के वाक्यों के अंत में ‘गा’, ‘गे’ ‘गी’ इत्यादि आते हैं।
जैसे:-
- शायद आज राम रावण को मार दे।
- यदि राधा आएगी, तो श्याम भी आएगा।
- कृष्ण बंसी बजाएगा।
- आकांक्षा स्कूल जाएगी।
भविष्य काल के भेद:-
भविष्य काल के तीन भेद हैं-
(i) सामान्य भविष्य
(ii) संभाव्य भविष्य
(iii) हेतुहेतुमद् भविष्य
(i) सामान्य भविष्य:-
जो क्रिया वर्तमान में सामान्य रूप से होती है। वह सामान्य वर्तमान काल की क्रिया कहलाती है।
जैसे:-
2. संदीप आज आए गा|
3. वंश कबड्डी खेलेगा।
(ii) संभाव्य भविष्य:-
जिस क्रिया से भविष्य में किसी कार्य के होने की संभावना हो उसे संभाव्य भविष्य काल कहते हैं।
जैसे:-
1. शायद कृष्णा कल आएगी।
2. परीक्षा में शायद मुझे अच्छे अंक प्राप्त हों।
3. संभव है आज खेत में जानवर ना आयें।
(iii) हेतुहेतुमद् भविष्य:-
इसमें एक क्रिया का होना दूसरी क्रिया के होने पर निर्भर करता है।
जैसे:-
1. वह आए तो मैं जाऊँ।
2. अगर तुम मेहनत करोगे तो फल अवश्य मिलेगा।
3. आप कमाएँ तो हम खाएँ।
वाच्य
वाच्य क्रिया के उस रूपान्तर या परिवर्तन को कहते है, जिससे इस बात का बोध हो कि वाक्य में कर्ता, कर्म अथवा भाव इनमें से किसकी प्रधानता है| इससे यह स्पष्ट होता है कि वाक्य में इस्तेमाल क्रिया के लिंग, वचन तथा पुरुष कर्ता, कर्म या भाव में से किसके अनुसार है।
जैसे:-
- रश्मि खाती है।
(‘रश्मि’ कर्ता के अनुसार क्रिया खाती है स्त्रीलिंग, एकवचन, अन्य पुरुष)
- मैं पुस्तक पढ़ता हूँ।
‘मैं’ कर्ता के अनुसार क्रिया ‘पढ़ता हूँ’ पुल्लिंग, एकवचन, प्रथम पुरुष
वाच्य के प्रयोग
वाक्य में क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष का अध्ययन ‘प्रयोग’ कहलाता है। ऐसा पाया जाता है कि वाक्य की क्रिया का लिंग, वचन और पुरुष कभी ‘कर्ता’ तो कभी ‘कर्म’ के अनुसार होता है। लेकिन कभी-कभी वाक्य की क्रिया कर्ता या कर्म के अनुसार न होकर एकवचन, पुल्लिंग तथा अन्यपुरुष होती है। इसी को प्रयोग कहते है|
वाच्य के भेद:-
वाच्य के तीन भेद हैं
- कर्तृवाच्य
- कर्मवाच्य
- भाववाच्य
i) कर्तृवाच्य:-
क्रिया का वह रूपान्तर, जिससे वाक्य में कर्ता की प्रधानता का बोध हो उसे ‘कर्तृवाच्य’ कहलाता है। कर्तृवाच्य में कर्ता प्रमुख होता है, कर्म गौण। इस वाक्य में अकर्मक और सकर्मक दोनों तरह की क्रियाएँ हो सकती हैं।
जैसे:-
- लक्ष्मी पुस्तक पढ़ती है।
- लड़का खाता है।
यहाँ पढ़ती है‘, ‘खाता है‘ क्रियाओं का कर्ता क्रमशः ‘लक्ष्मी’, ‘लड़का’ वाक्य का उद्देश्य हैं।
- पिता जी आ रहे हैं।
- मजदूर काम कर रहे हैं।
यहाँ ‘आ रहे हैं’, ‘कर रहे हैं’ क्रियाओं का कर्ता क्रमशः ‘पिता’, ‘मजदूर’ वाक्य का उद्देश्य हैं।
ii) कर्मवाच्य:-
क्रिया का वह रूपांतर, जिससे वाक्य में कर्म की प्रधानता का बोध हो, उसे कर्मवाच्य कहलाता है। इसके कारण वाक्य में कर्ता का लोप हो जाता है अथवा कर्ता के बाद ‘से’ या ‘द्वारा’ का प्रयोग होता है। कर्मवाच्य में सकर्मक क्रिया होती हैं।
जैसे:-
- किताबें पढ़ी जाती है।
- लड्डू खाया जाता है।
यहाँ कर्म ‘किताबें’, ‘लड्डू’ के अनुसार क्रिया का रूपान्तर हुआ है।
iii) भाववाच्य:-
क्रिया का वह रूपांतर, जिससे वाक्य में क्रिया या भाव की प्रधानता का बोध हो, उसे भाववाच्य कहते हैं। अर्थात जिन वाक्यों में न तो कर्ता और कर्म की प्रधानता नहीं होती, केवल क्रिया या भाव प्रधान होता है, वह भाववाच्य कहलाता है। भाववाच्य में केवल अकर्मक क्रिया होती है।
जैसे:-
- लाडो से पढ़ा नहीं जाता।
- मुझसे शोर में नहीं सोया जाता।
- सर्दी में उससे खेला नहीं जाता।
यहाँ कर्ता ‘लाडो’, ‘मुझसे’, ‘उससे,’ की प्रधानता न होकर भाव (‘पढ़ा नहीं जाता’, ‘सोया जाता’, ‘खेला नहीं जाता’) की प्रधानता है।